लेखनी प्रतियोगिता -30-Jun-2023
दो अनजानों की आंखमिचौली में, हम वो रात गुज़ार रहे थे।
वो बैठी थी पर्दानशी, और हम दर्पण में, उसे निहार रहे थे
गुस्से में भी वो चेहरा, क्या कहूं कितना प्यारा लग रहा था,
नज़रें झुका रहे थे,फिर उठा रहे थे,उसे देख बार बार रहे थे
नज़रें छुप रहीं थी, नज़रें मिल रहीं थीं, कभी नज़रें चुराई जा रहीं थी
नज़र ही नज़र में मानो, कोई कर तकरार रहे थे।
वो हंसती कभी, चिढ़ती कभी,कभी सर पकड़ लेती थी
उनकी इन अदाओं की यारों, हम सौ सौ सदके उतार रहे थे।
ना हम उन्हे फिर देखेंगे,ना वो ही कभी मिलेगी हम से
दिल की मगर जाने क्या इल्तेजा थी,
अंजाना जो एक चेहरा, यूं ही दिल में उतार रहे थे।
- अनुभव मोवार ' गुमनाम '
Gunjan Kamal
03-Jul-2023 06:40 AM
👏👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
01-Jul-2023 08:23 AM
बहुत ही सुंदर
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Abhinav ji
01-Jul-2023 08:00 AM
Very nice 👍
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